नेहरू बाल पुस्तकालय >> जब आये पहिए जब आये पहिएअनूप राय
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अनूप राय द्वारा प्रस्तुत कहानी जब आये पहिए...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जब आये पहिए
‘‘हे ईश्वर ! ढोने को इतना भारी सामान! क्या काम है!’’ चीटियां अपने सामान को ढोकर ले जाते हुए आपस में बातें कर रही थीं।
‘‘क्या इसका कभी अंत भी होगा !’’ एक थकी हुई चींटी ने शिकायत की।
‘‘क्यों नहीं ? हम अपने बोझ को ढोने के लिए छड़ियों को काम में ला सकती हैं,’’ एक समझदार चींटी ने कहा।
‘‘यह भी थकाने वाला है ! बल्कि यह तो भार को और भी बढ़ाने वाला है। इसे खींचने के लिए ताकत लगानी पड़ती है,’’ दूसरी चींटी ने विरोध जताया।
एक और विचार आया। ‘‘हम सब एक साथ मिलकर वजन को ढोएं,’’ मुखियां चींटी ने कहा। लेकिन वजन की समस्या अब भी बनी हुई थी।
तब उन्होंने एक जोड़ा गोल लट्ठों को एक और जोड़े के साथ मिलाने का निर्णय लिया।
इससे कुछ राहत मिली। अब वे वजन को ढो नहीं रही थीं, बल्कि उसे ठेलने में ताकत लगा रही थीं।
कुछ समय बाद ठेलना भी थकाने वाला लगने लगा।
‘‘लकड़ी के तख्तों को गोल लट्ठों पर रखना कैसा रहेगा!’’ एक चींटी ने सुझाव दिया।
‘‘क्या इसका कभी अंत भी होगा !’’ एक थकी हुई चींटी ने शिकायत की।
‘‘क्यों नहीं ? हम अपने बोझ को ढोने के लिए छड़ियों को काम में ला सकती हैं,’’ एक समझदार चींटी ने कहा।
‘‘यह भी थकाने वाला है ! बल्कि यह तो भार को और भी बढ़ाने वाला है। इसे खींचने के लिए ताकत लगानी पड़ती है,’’ दूसरी चींटी ने विरोध जताया।
एक और विचार आया। ‘‘हम सब एक साथ मिलकर वजन को ढोएं,’’ मुखियां चींटी ने कहा। लेकिन वजन की समस्या अब भी बनी हुई थी।
तब उन्होंने एक जोड़ा गोल लट्ठों को एक और जोड़े के साथ मिलाने का निर्णय लिया।
इससे कुछ राहत मिली। अब वे वजन को ढो नहीं रही थीं, बल्कि उसे ठेलने में ताकत लगा रही थीं।
कुछ समय बाद ठेलना भी थकाने वाला लगने लगा।
‘‘लकड़ी के तख्तों को गोल लट्ठों पर रखना कैसा रहेगा!’’ एक चींटी ने सुझाव दिया।
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